तुलसी माता की कथा || जया एकादशी व्रत के पारण की कहानी || Tulsi Mata ki kahani
जय एकादशी व्रत कब है और पारण का समय
• जया एकादशी 2025 में कब है #shorts #tr...
फ्रेंड्स , जया एकादशी व्रत के बारे में आज आप सुनेंगे तुलसी माता की कथा।एक बार की बात है, वृंदा (तुलसी) नाम की एक महिला थी, जो बेहद पतिव्रता महिला थीं। वृंदा, जो दैत्यराज कालनेमी की कन्या थी, का विवाह जालंधर नाम के एक राक्षस राजा से हुआ था, जो भगवान शिव से प्राप्त आशीर्वाद के कारण असाधारण रूप से शक्तिशाली था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जलंधर की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई थी। भगवान शिव ने देवराज इंद्र के अहंकार को नष्ट करने के लिए अपनी तीसरी आंख खोली थी। तीसरी आंख से निकली ऊर्जा को भगवान शिव ने समुद्र में फेंक दिया, जिससे जलंधर का जन्म हुआ। जालंधर की शक्ति बेजोड़ थी, और वह देवताओं को भी हरा सकता था। हालांकि, वह एक राक्षस था और उसने कई बुरे काम किए थे।जालंधर ने एक बार माता लक्ष्मी को प्राप्त करने की इच्छा से युद्ध किया। जालंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था, और माता लक्ष्मी की उत्पत्ति भी समुद्र से ही मानी जाती है। इसी कारण माता लक्ष्मी ने जालंधर को अपने भाई के रुप में स्वीकार कर लिया। जालंधर जब पराजित हो गया, तो वह वहां से देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पहुंच गया। लेकिन, माता पार्वती ने अपने योग बल से उसे पहचान लिया और वहां से अंतर्धान हो गईं। वहां, जालंधर भगवान शिव के साथ ही युद्ध करने लगा। देवी पार्वती ने सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। दूसरी ओर, जालंधर की पत्नी वृंदा पवित्रता, भक्ति और धार्मिकता की जीवंत मिसाल थीं। अपने पति के प्रति वृंदा की गहरी भक्ति और उनकी पवित्रता के कारण, जालंधर की शक्ति को कोई चुनौती नहीं दे सकता था। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए, जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत आवश्यक था। सभी देवी-देवता उसकी बढ़ती शक्ति से चिंतित थे। उन्हें एहसास हुआ कि जालंधर के अजेय बने रहने के पीछे उसकी पत्नी के गुण और भक्ति की बड़ी भूमिका थी। अपनी हताशा में, देवताओं ने समाधान के लिए भगवान विष्णु से संपर्क किया। विष्णु ने जालंधर की शक्ति को तोड़ने की योजना बनाई। उन्होंने स्वयं जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा को बहकाया, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही उधर कैलाश पर्वत पर वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया। इस धोखे से अनजान वृंदा को जब सच्चाई का पता चला तो वह बहुत दुखी और क्रोधित हुईं। अपने दुःख में, उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया, कि उन्हें अपनी पत्नी, देवी लक्ष्मी से अलग होने का दर्द उसी तरह सहना पड़ेगा, जैसे वह अपने पति से अलग हुई थी। वृंदा ने क्रोध में आकर भगवान विष्णु को हृदयहीन शिला स्वरूप में बदलने का श्राप दे दिया और भगवान विष्णु ने शालिग्राम पत्थर बन गए। वृंदा के श्राप के परिणामस्वरूप, भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी को छोड़कर पृथ्वी पर वियोग में रहना पड़ा। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रह्मांड में असंतुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दें। वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त कर दिया, पर स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उग आया। विष्णु भगवान ने वृंदा से कहा, हे वृंदा, तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि जो मनुष्य मेरे शालिग्राम स्वरूप के साथ तुलसी विवाह का अनुष्ठान करेगा, उसे इस लोक और परलोक में यश प्राप्त होगा। तुलसी विवाह के दिन, लोग तुलसी के पौधे को सजाते हैं और मंत्रों का जाप और फल, फूल और मिठाई चढ़ाने सहित विवाह की रस्में निभाते हैं। भक्त सुखी और समृद्ध जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं। कुछ लोग उत्सव के दौरान उपवास भी करते हैं या अन्य पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
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