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निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी
मातृ प्रेम, करुणा, अटूट भक्ति और अखंडता का प्रतीक। निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी एक अनुकरणीय संत थीं, जो उन्हें दी गई प्रत्येक भूमिका और जिम्मेदारी को गहराई से निभाती थीं। उनका बचपन से ही आध्यात्मिक रुझान और खोज थी, और शहंशाह बाबा अवतार सिंह ने उन्हें 8 साल की छोटी उम्र में ईश्वर-ज्ञान का आशीर्वाद दिया था। राजमाता कुलवंत जी ने अपना जीवन ईश्वरीय इच्छा को पूर्ण रूप से स्वीकार करते हुए बिताया।
उनका विवाह गुरबचन सिंह जी से हुआ, जो बाद में मिशन के तीसरे सतगुरु बने। उन्होंने अपने सभी गुरुओं के नक्शेकदम पर निडर होकर निरंकारी मिशन का संदेश फैलाया, न केवल शब्दों के माध्यम से, बल्कि कार्यों के माध्यम से भी आह्वान किया। उन्होंने व्यवहार में नम्रता बनाए रखने के साथ-साथ अपने सतगुरु के प्रति श्रद्धा को सभी सांसारिक संबंधों से ऊपर रखा।
मानव जाति के प्रति उनके योगदान को विभिन्न सम्मानों और पुरस्कारों के माध्यम से स्वीकार किया गया। उनके ऐतिहासिक गीत और कविताएँ सच्ची भक्ति के उत्कृष्ट संदेशों के रूप में आने वाले कई युगों तक भक्तों की स्मृति में अंकित रहेंगी।